श्रृंगार गीत (Shringar Geet) 7

गाँव में प्यार

श्रृंगार गीता के सातवें अध्याय में दूलहा और दुल्हन एक ग्रामीण परिसर में एक-दूसरे से प्यार व्यक्त करते हैं।

1हे कुलीन की पुत्री, तेरे पाँव जूतियों में

2तेरी नाभि गोल कटोरा है,

3तेरी दोनों छातियाँ

4तेरा गला हाथीदाँत का मीनार है।

5तेरा सिर तुझ पर कर्मेल के समान शोभायमान है,

6हे प्रिय और मनभावनी कुमारी,

7तेरा डील-डौल खजूर के समान शानदार है

8मैंने कहा, “मैं इस खजूर पर चढ़कर उसकी डालियों को पकड़ूँगा।”

9और तेरे चुम्बन उत्तम दाखमधु के समान हैं जो सरलता से होंठों पर से धीरे-धीरे बह जाती है।

10मैं अपनी प्रेमी की हूँ।

11हे मेरे प्रेमी, आ, हम खेतों में निकल जाएँ

12फिर सवेरे उठकर दाख की बारियों में चलें,

13दूदाफलों से सुगन्ध आ रही है,