भजन - Bhajan 78
इजराइल के इतिहास से सबक।
प्रारंभिक जिन्न का सारांश: प्रारंभिक जिन्न 78 इस्राएल के इतिहास का मुखयांकन करता है और यह कैसे भगवान ने उनके लगातार अविनीत अनुशासन के बावजूद खुद को साबित किया। यह माहत्वाकांक्षी है कि भगवान की वफादारी के ज्ञान को भविष्य की पीढ़ियों को संग्रहित करने के मूल्य को प्रमुख बनाए।
1हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो;
2मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा;
3जिन बातों को हमने सुना, और जान लिया,
4उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे,
5उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई,
6कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हें जानें;
7जिससे वे परमेश्वर का भरोसा रखें, परमेश्वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ,
8और अपने पितरों के समान न हों,
9एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी,
10उन्होंने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की,
11उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे,
12उसने तो उनके बाप-दादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे।
13उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया,
14उसने दिन को बादल के खम्भे से
15वह जंगल में चट्टानें फाड़कर,
16उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं
17तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए,
18और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा की।
19वे परमेश्वर के विरुद्ध बोले,
20उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया,
21यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया,
22इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था,
23तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी,
24और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया,
25मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली;
26उसने आकाश में पुरवाई को चलाया,
27और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया,
28और उनकी छावनी के बीच में,
29और वे खाकर अति तृप्त हुए,
30उनकी कामना बनी ही रही,
31कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का,
32इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए;
33तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में,
34जब वह उन्हें घात करने लगता, तब वे उसको पूछते थे;
35उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है,
36तो भी उन्होंने उसकी चापलूसी की;
37क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था;
38परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता;
39उसको स्मरण हुआ कि ये नाशवान हैं,
40उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया,
41वे बार-बार परमेश्वर की परीक्षा करते थे,
42उन्होंने न तो उसका भुजबल स्मरण किया,
43कि उसने कैसे अपने चिन्ह मिस्र में,
44उसने तो मिस्रियों की नदियों को लहू बना डाला,
45उसने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हें काट खाया,
46उसने उनकी भूमि की उपज कीड़ों को,
47उसने उनकी दाखलताओं को ओेलों से,
48उसने उनके पशुओं को ओलों से,
49उसने उनके ऊपर अपना प्रचण्ड क्रोध और रोष भड़काया,
50उसने अपने क्रोध का मार्ग खोला,
51उसने मिस्र के सब पहलौठों को मारा,
52परन्तु अपनी प्रजा को भेड़-बकरियों के समान प्रस्थान कराया,
53तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ,
54और उसने उनको अपने पवित्र देश की सीमा तक,
55उसने उनके सामने से अन्यजातियों को भगा दिया;
56तो भी उन्होंने परमप्रधान परमेश्वर की परीक्षा की और उससे बलवा किया,
57और मुड़कर अपने पुरखाओं के समान विश्वासघात किया;
58क्योंकि उन्होंने ऊँचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई,
59परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया,
60उसने शीलो के निवास,
61और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया,
62उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया,
63उनके जवान आग से भस्म हुए,
64उनके याजक तलवार से मारे गए,
65तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा,
66उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया;
67फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया;
68परन्तु यहूदा ही के गोत्र को,
69उसने अपने पवित्रस्थान को बहुत ऊँचा बना दिया,
70फिर उसने अपने दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया;
71वह उसको बच्चेवाली भेड़ों के पीछे-पीछे फिरने से ले आया
72तब उसने खरे मन से उनकी चरवाही की,