भजन - Bhajan 22
एक दर्दनाक और भरोसे की पुकार
भजन 22 में कवि की आवाज परमेश्वर की ओर दु:ख भरी और भावनात्मक है। कवि को अकेलापन की भावना होती है, लेकिन अंत में प्रभु के उद्धार में विश्वास और आत्मविश्वास का अभिव्यक्त करता है।
1हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर,
2हे मेरे परमेश्वर, मैं दिन को पुकारता हूँ
3परन्तु तू जो इस्राएल की स्तुति के सिंहासन पर विराजमान है,
4हमारे पुरखा तुझी पर भरोसा रखते थे;
5उन्होंने तेरी दुहाई दी और तूने उनको छुड़ाया
6परन्तु मैं तो कीड़ा हूँ, मनुष्य नहीं;
7वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं,
8वे कहते है “वह यहोवा पर भरोसा करता है,
9परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला;
10मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया,
11मुझसे दूर न हो क्योंकि संकट निकट है,
12बहुत से सांडों ने मुझे घेर लिया है,
13वे फाड़ने और गरजनेवाले सिंह के समान
14मैं जल के समान बह गया,
15मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया;
16क्योंकि कुत्तों ने मुझे घेर लिया है;
17मैं अपनी सब हड्डियाँ गिन सकता हूँ;
18वे मेरे वस्त्र आपस में बाँटते हैं,
19परन्तु हे यहोवा तू दूर न रह!
20मेरे प्राण को तलवार से बचा,
21मुझे सिंह के मुँह से बचा,
22मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का प्रचार करूँगा;
23हे यहोवा के डरवैयों, उसकी स्तुति करो!
24क्योंकि उसने दुःखी को तुच्छ नहीं जाना
25बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है;
26नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे;
27पृथ्वी के सब दूर-दूर देशों के लोग उसको स्मरण करेंगे
28क्योंकि राज्य यहोवा की का है,
29पृथ्वी के सब हष्टपुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे;
30एक वंश उसकी सेवा करेगा;
31वे आएँगे और उसके धर्म के कामों को एक