भजन - Bhajan 119

भगवान के शब्द की महिमा: कानून की समर्पण

भजन ११९ का सारांश: भजन ११९ बाइबल का सबसे लम्बा अध्याय है और पूरी तरह से परमेश्वर के वचन की महिमा को समर्पित है। यह एक आक्रोस्टिक कविता है, जिसमें प्रत्येक अठ (८) छंद प्रारंभ होता है भगवान के वचन के एक अक्षर से। भजनगायक भगवान की आज्ञाओं, संविधान, नियमों और वादों के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, और उनके शाश्वत स्वरूप की, साथ ही उनकी मार्गदर्शन, बुद्धि और मोक्ष प्रदान करने की क्षमता की प्रशंसा करते हैं।

1क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं,

2क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं,

3फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते,

4तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं,

5भला होता कि

6तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा,

7जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा,

8मैं तेरी विधियों को मानूँगा:

9जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे?

10मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ;

11मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है,

12हे यहोवा, तू धन्य है;

13तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन,

14मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से,

15मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा,

16मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा;

17अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ,

18मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की

19मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ;

20मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण

21तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है,

22मेरी नामधराई और अपमान दूर कर,

23हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे,

24तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल

25मैं धूल में पड़ा हूँ;

26मैंने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है;

27अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा,

28मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है;

29मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर;

30मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है,

31मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ,

32जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा,

33हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे;

34मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा

35अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला,

36मेरे मन को लोभ की ओर नहीं,

37मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे;

38तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है,

39जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर;

40देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ;

41हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार,

42तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा,

43मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक

44तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार,

45और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा,

46और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा,

47क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ,

48मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा

49जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर,

50मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है,

51अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है,

52हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके

53जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं,

54जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ,

55हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया,

56यह मुझसे इस कारण हुआ,

57यहोवा मेरा भाग है;

58मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है;

59मैंने अपनी चालचलन को सोचा,

60मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।

61मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ,

62तेरे धर्ममय नियमों के कारण

63जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं,

64हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है;

65हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार

66मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे,

67उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था;

68तू भला है, और भला करता भी है;

69अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है,

70उनका मन मोटा हो गया है,

71मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है,

72तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये

73तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ;

74तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे,

75हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं,

76मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे,

77तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा;

78अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है;

79जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें,

80मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो,

81मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है;

82मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है;

83क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ,

84तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं?

85अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते,

86तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं;

87वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे,

88अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला,

89हे यहोवा, तेरा वचन,

90तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है;

91वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं;

92यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता,

93मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा;

94मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर;

95दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं;

96मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है,

97आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ!

98तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है,

99मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ,

100मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ,

101मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है,

102मैं तेरे नियमों से नहीं हटा,

103तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं,

104तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ,

105तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक,

106मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है

107मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ;

108हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर,

109मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है,

110दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है,

111मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है,

112मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है,

113मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ,

114तू मेरी आड़ और ढाल है;

115हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ,

116हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ,

117मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा,

118जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं,

119तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है;

120तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है,

121मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है;

122अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो,

123मेरी आँखें तुझसे उद्धार पाने,

124अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर,

125मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे

126वह समय आया है, कि यहोवा काम करे,

127इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ।

128इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ;

129तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं,

130तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है;

131मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा,

132जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है,

133मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर,

134मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले,

135अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे,

136मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है,

137हे यहोवा तू धर्मी है,

138तूने अपनी चितौनियों को

139मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ,

140तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है,

141मैं छोटा और तुच्छ हूँ,

142तेरा धर्म सदा का धर्म है,

143मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ,

144तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं;

145मैंने सारे मन से प्रार्थना की है,

146मैंने तुझसे प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर,

147मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी;

148मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं,

149अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले;

150जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं;

151हे यहोवा, तू निकट है,

152बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ,

153मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले,

154मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले;

155दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है,

156हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है;

157मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं,

158मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ;

159देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ!

160तेरा सारा वचन सत्य ही है;

161हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं,

162जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है,

163झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ,

164तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन

165तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है;

166हे यहोवा, मैं तुझसे उद्धार पाने की आशा रखता हूँ;

167मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ,

168मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ,

169हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे;

भजन - Bhajan 119:169 - हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे;
भजन - Bhajan 119:169 - हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे;

170मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे;

171मेरे मुँह से स्तुति निकला करे,

172मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा,

173तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है,

174हे यहोवा, मैं तुझसे उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ,

175मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा,

176मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ;