भजन - Bhajan 104
सृष्टिकर्ता की प्रशंसा
प्रार्थना 104 भगवान ब्रह्माजी के लिए एक सुंदर स्तुती का गीत है। शायक में भगवान के सृष्टि की महिमा, शक्ति और समृद्धि का एक चित्रण किया गया है, जिसमें आकाश की विशालता से लेकर सबसे छोटे समुद्री जीवों तक सब कुछ मनाया गया है।
1हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!
2तू उजियाले को चादर के समान ओढ़े रहता है,
3तू अपनी अटारियों की कड़ियाँ जल में धरता है,
4तू पवनों को अपने दूत,
5तूने पृथ्वी को उसकी नींव पर स्थिर किया है,
6तूने उसको गहरे सागर से ढाँप दिया है जैसे वस्त्र से;
7तेरी घुड़की से वह भाग गया;
8वह पहाड़ों पर चढ़ गया, और तराइयों के मार्ग से उस स्थान में उतर गया
9तूने एक सीमा ठहराई जिसको वह नहीं लाँघ सकता है,
10तू तराइयों में सोतों को बहाता है;
11उनसे मैदान के सब जीव-जन्तु जल पीते हैं;

12उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते,
13तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है,
14तू पशुओं के लिये घास,
15और दाखमधु जिससे मनुष्य का मन आनन्दित होता है,
16यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं,
17उनमें चिड़ियाँ अपने घोंसले बनाती हैं;
18ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिये हैं;
19उसने नियत समयों के लिये चन्द्रमा को बनाया है;
20तू अंधकार करता है, तब रात हो जाती है;
21जवान सिंह अहेर के लिये गर्जते हैं,
22सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं
23तब मनुष्य अपने काम के लिये
24हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं!
25इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है,
26उसमें जहाज भी आते जाते हैं,
27इन सब को तेरा ही आसरा है,
28तू उन्हें देता है, वे चुन लेते हैं;
29तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं;
30फिर तू अपनी ओर से साँस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं;
31यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे,
32उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी काँप उठती है,
33मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूँगा;
34मेरे सोच-विचार उसको प्रिय लगे,
35पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएँ,