नीतिवचन 4

ज्ञान का मार्ग

सारांश: सुलेमान पठकों से विवेक का मार्ग चुनने की आवाज करते हैं, अपने दिलों की हिफाजत करने और धार्मिक मार्ग पर सच बने रहने की।

1हे मेरे पुत्रों, पिता की शिक्षा सुनो,

2क्योंकि मैंने तुम को उत्तम शिक्षा दी है;

3देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्र था,

4और मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता था,

5बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर;

6बुद्धि को न छोड़ और वह तेरी रक्षा करेगी;

7बुद्धि श्रेष्ठ है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर;

8उसकी बड़ाई कर, वह तुझको बढ़ाएगी;

9वह तेरे सिर पर शोभायमान आभूषण बांधेगी;

10हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर,

11मैंने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है;

12जिसमें चलने पर तुझे रोक टोक न होगी,

13शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे;

14दुष्टों की डगर में पाँव न रखना,

15उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल,

16क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती;

17क्योंकि वे दुष्टता की रोटी खाते,

18परन्तु धर्मियों की चाल, भोर-प्रकाश के समान है,

19दुष्टों का मार्ग घोर अंधकारमय है;

20हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन,

21इनको अपनी आँखों से ओझल न होने दे;

22क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का,

23सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर;

24टेढ़ी बात अपने मुँह से मत बोल,

25तेरी आँखें सामने ही की ओर लगी रहें,

26अपने पाँव रखने के लिये मार्ग को समतल कर,

27न तो दाहिनी ओर मुड़ना, और न बाईं ओर;