नीतिवचन 30

अगुर के वचन

प्रेरितों की त्रयीसी एक संग्रह है जिसमें अगर, जाकेह का बेटा, के विचार और ज्ञान शामिल हैं। अगर ने अपनी विनम्रता और भगवान पर आश्रितता को व्यक्त किया है, साथ ही संसार की अजूबे और पेचीदगी पर अपनी टिप्पणियाँ भी की है, और यह भी बताया कि ईमानदारी से जीने की महत्वता।

1 याके के पुत्र आगूर के प्रभावशाली वचन।

2निश्चय मैं पशु सरीखा हूँ, वरन् मनुष्य कहलाने के योग्य भी नहीं;

3न मैंने बुद्धि प्राप्त की है,

4कौन स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर आया?

5परमेश्‍वर का एक-एक वचन ताया हुआ है;

6उसके वचनों में कुछ मत बढ़ा,

7मैंने तुझ से दो वर माँगे हैं,

8अर्थात् व्यर्थ और झूठी बात मुझसे दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना;

9ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूँ कि यहोवा कौन है?

10किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना,

11ऐसे लोग हैं, जो अपने पिता को श्राप देते

12वे ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं,

13एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है,

14एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं, जिनके दाँत तलवार और उनकी दाढ़ें छुरियाँ हैं,

15जैसे जोंक की दो बेटियाँ होती हैं, जो कहती हैं, “दे, दे,”

16अधोलोक और बाँझ की कोख,

17जिस आँख से कोई अपने पिता पर अनादर की दृष्टि करे,

18तीन बातें मेरे लिये अधिक कठिन है,

19आकाश में उकाब पक्षी का मार्ग,

20व्यभिचारिणी की चाल भी वैसी ही है;

21तीन बातों के कारण पृथ्वी काँपती है; वरन् चार हैं,

22दास का राजा हो जाना,

23घिनौनी स्त्री का ब्याहा जाना,

24पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं,

25चींटियाँ निर्बल जाति तो हैं,

26चट्टानी बिज्जू बलवन्त जाति नहीं,

27टिड्डियों के राजा तो नहीं होता,

28और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है,

29तीन सुन्दर चलनेवाले प्राणी हैं;

30सिंह जो सब पशुओं में पराक्रमी है,

31शिकारी कुत्ता और बकरा,

32यदि तूने अपनी बढ़ाई करने की मूर्खता की,

33क्योंकि जैसे दूध के मथने से मक्खन