नीतिवचन 3

परमेश्वर में विश्वास।

सारांश: सुलेमान भगवान में विश्वास के लिए उत्तेजित करते हैं, एक संगीतिक जीवन के लिए विश्वास और ज्ञान को बांधकर।

1हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना;

2क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी,

3कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ;

4तब तू परमेश्‍वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा,

5तू अपनी समझ का सहारा न लेना,

6उसी को स्मरण करके सब काम करना,

7अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना;

8ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा,

9अपनी सम्पत्ति के द्वारा

10इस प्रकार तेरे खत्ते भरे

11हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुँह न मोड़ना,

12जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को डाँटता है,

13क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,

14जो उपलब्धि बुद्धि से प्राप्त होती है, वह चाँदी की प्राप्ति से बड़ी,

15वह बहुमूल्य रत्नों से अधिक मूल्यवान है,

16उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु,

17उसके मार्ग आनन्ददायक हैं,

18जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं,

19यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली;

20उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले,

21हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि

22तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा,

23तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा,

24जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा,

25अचानक आनेवाले भय से न डरना,

26क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा,

27जो भलाई के योग्य है उनका भला अवश्य करना,

28यदि तेरे पास देने को कुछ हो,

29जब तेरा पड़ोसी तेरे पास निश्चिन्त रहता है,

30जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो,

31उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना,

32क्योंकि यहोवा कुटिल मनुष्य से घृणा करता है,

33दुष्ट के घर पर यहोवा का श्राप

34ठट्ठा करनेवालों का वह निश्चय ठट्ठा करता है;

35बुद्धिमान महिमा को पाएँगे,