नीतिवचन 23
रोजाने के जीवन के लिए बुद्धिमानी
प्रेरितों का ग्रंथ 'नीतिवचन' का 23 वां अध्याय दिनचर्या में बुद्धिमत्ता के साथ जीने के लिए व्यावहारिक सलाह प्रदान करता है। इस अध्याय में अत्यधिक सुखदाता के खतरों, माता-पिता की सुनने की महत्वता, और झूठ के परिणामों जैसे विषयों का विचार किया गया है। इसमें बुद्धिमत्ता की खोज करने और न्यायप्रिय और धर्मी जीवन जीने के महत्व को भी जोर दिया गया है।
1जब तू किसी हाकिम के संग भोजन करने को बैठे,
2और यदि तू अधिक खानेवाला हो,
3उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा न करना,
4धनी होने के लिये परिश्रम न करना;
5जब तू अपनी दृष्टि धन पर लगाएगा,
6जो डाह से देखता है, उसकी रोटी न खाना,
7क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है,
8जो कौर तूने खाया हो, उसे उगलना पड़ेगा,
9मूर्ख के सामने न बोलना,
10पुरानी सीमाओं को न बढ़ाना,
11क्योंकि उनका छुड़ानेवाला सामर्थी है;
12अपना हृदय शिक्षा की ओर,
13लड़के की ताड़ना न छोड़ना;
14तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा।
15हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो,
16और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा।
17तू पापियों के विषय मन में डाह न करना,
18क्योंकि अन्त में फल होगा,
19हे मेरे पुत्र, तू सुनकर बुद्धिमान हो,
20दाखमधु के पीनेवालों में न होना,
21क्योंकि पियक्कड़ और पेटू दरिद्र हो जाएँगे,
22अपने जन्मानेवाले पिता की सुनना,
23सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं;
24धर्मी का पिता बहुत मगन होता है;
25तेरे कारण माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन होए।
26हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा,
27वेश्या गहरा गड्ढा ठहरती है;
28वह डाकू के समान घात लगाती है,
29कौन कहता है, हाय? कौन कहता है, हाय, हाय? कौन झगड़े रगड़े में फँसता है?
30उनकी जो दाखमधु देर तक पीते हैं,
31जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है,
32क्योंकि अन्त में वह सर्प के समान डसता है,
33तू विचित्र वस्तुएँ देखेगा,
34और तू समुद्र के बीच लेटनेवाले
35तू कहेगा कि मैंने मार तो खाई, परन्तु दुःखित न हुआ;