नीतिवचन 12
रोजाना जीवन में ज्ञान और धर्म.
प्रस्तावना: प्रेरणाशास्त्र द्वादशवान में बुद्धिमत्ता के शब्दों और विवेचन के प्रभाव को प्रकट करता है बिना सोचे-समझे कार्य और मूर्ख सलाह के खतरों का।
1जो शिक्षा पाने से प्रीति रखता है वह ज्ञान से प्रीति रखता है,
2भले मनुष्य से तो यहोवा प्रसन्न होता है,
3कोई मनुष्य दुष्टता के कारण स्थिर नहीं होता,
4भली स्त्री अपने पति का मुकुट है,
5धर्मियों की कल्पनाएँ न्याय ही की होती हैं,
6दुष्टों की बातचीत हत्या करने के लिये घात लगाने के समान होता है,
7जब दुष्ट लोग उलटे जाते हैं तब वे रहते ही नहीं,
8मनुष्य कि बुद्धि के अनुसार उसकी प्रशंसा होती है,
9जिसके पास खाने को रोटी तक नहीं,
10धर्मी अपने पशु के भी प्राण की सुधि रखता है,
11जो अपनी भूमि को जोतता, वह पेट भर खाता है,
12दुष्ट जन बुरे लोगों के लूट के माल की अभिलाषा करते हैं,
13बुरा मनुष्य अपने दुर्वचनों के कारण फंदे में फँसता है,
14सज्जन अपने वचनों के फल के द्वारा भलाई से तृप्त होता है,
15मूर्ख को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है,
16मूर्ख की रिस तुरन्त प्रगट हो जाती है,
17जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है,
18ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच विचार का बोलना तलवार के समान चुभता है,
19सच्चाई सदा बनी रहेगी,
20बुरी युक्ति करनेवालों के मन में छल रहता है,
21धर्मी को हानि नहीं होती है,
22झूठों से यहोवा को घृणा आती है
23विवेकी मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है,
24कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं,
25उदास मन दब जाता है,
26धर्मी अपने पड़ोसी की अगुआई करता है,
27आलसी अहेर का पीछा नहीं करता,
28धर्म के मार्ग में जीवन मिलता है,