आयुब 41

भगवान बोलते हैं

सारांश: भगवान जॉब से बोलते हैं, उसे ब्रह्मांड के कामकाज को समझाने के लिए चुनौती देते हैं और अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता की पुष्टि करते हैं।

1“फिर क्या तू लिव्यातान को बंसी के द्वारा खींच सकता है,

2क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता

3क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा,

4क्या वह तुझ से वाचा बाँधेगा

5क्या तू उससे ऐसे खेलेगा जैसे चिड़िया से,

6क्या मछुए के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे?

7क्या तू उसका चमड़ा भाले से,

8तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा,

9देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है;

10कोई ऐसा साहसी नहीं, जो लिव्यातान को भड़काए;

11किस ने मुझे पहले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े!

12“मैं लिव्यातान के अंगों के विषय,

13उसके ऊपर के पहरावे को कौन उतार सकता है?

14उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है?

15उसके छिलकों की रेखाएं घमण्ड का कारण हैं;

16वे एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं,

17वे आपस में मिले हुए

18फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है,

19उसके मुँह से जलते हुए पलीते निकलते हैं,

20उसके नथनों से ऐसा धुआँ निकलता है,

21उसकी साँस से कोयले सुलगते,

22उसकी गर्दन में सामर्थ्य बनी रहती है,

23उसके माँस पर माँस चढ़ा हुआ है,

24उसका हृदय पत्थर सा दृढ़ है,

25जब वह उठने लगता है, तब सामर्थी भी डर जाते हैं,

26यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उससे कुछ न बन पड़ेगा;

27वह लोहे को पुआल सा,

28वह तीर से भगाया नहीं जाता,

29लाठियाँ भी भूसे के समान गिनी जाती हैं;

30उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं,

31वह गहरे जल को हण्डे की समान मथता है

32वह अपने पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है।

33धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है,

34जो कुछ ऊँचा है, उसे वह ताकता ही रहता है,