आयुब 30
नौकरी एलीफाज का प्रतिवाद करता है
जॉब एलीफाज का जवाब देते हैं, अपनी रक्षा करते हैं और न्यायप्रिय ईश्वर में अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं।
1“परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझसे कम है, वे मेरी हँसी करते हैं,
2उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था?
3वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं,
4वे झाड़ी के आस-पास का लोनिया साग तोड़ लेते,
5वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं,
6डरावने नालों में, भूमि के बिलों में,
7वे झाड़ियों के बीच रेंकते,
8वे मूर्खों और नीच लोगों के वंश हैं
9“ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते,
10वे मुझसे घिन खाकर दूर रहते,
11परमेश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे दुःख दिया है,
12मेरी दाहिनी ओर बाज़ारू लोग उठ खड़े होते हैं,
13जिनके कोई सहायक नहीं,
14मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं,
15मुझ में घबराहट छा गई है,
16“और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ;
17रात को मेरी हड्डियाँ मेरे अन्दर छिद जाती हैं
18मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्र का रूप बदल गया है;
19उसने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है,
20मैं तेरी दुहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता;
21तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है;
22तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है,
23हाँ, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा,
24“तो भी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा?
25क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे?
26जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी;
27मेरी अन्तड़ियाँ निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं;
28मैं शोक का पहरावा पहने हुए मानो बिना सूर्य की गर्मी के काला हो गया हूँ।
29मैं गीदड़ों का भाई
30मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है,
31इस कारण मेरी वीणा से विलाप