आयुब 14

जोफर बोलता है

सारांश: जोफार, जॉब के तीसरे मित्र, बोलते हैं, जॉब को दुष्ट बताकर और इस ज़िम्मेदारी पर दुरुस्त करते हुए कि भगवान हमेशा दुष्टों को सज़ा देते हैं।

1“मनुष्य जो स्त्री से उत्‍पन्‍न होता है,

2वह फूल के समान खिलता, फिर तोड़ा जाता है;

3फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है?

4अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है?

5मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं,

6इस कारण उससे अपना मुँह फेर ले, कि वह आराम करे,

7'वृक्ष' के लिये तो आशा रहती है,

8चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए,

9तो भी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा,

10परन्तु मनुष्य मर जाता, और पड़ा रहता है;

11जैसे नदी का जल घट जाता है,

12वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता;

13भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता,

14यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?

15तू मुझे पुकारता, और मैं उत्तर देता हूँ;

16परन्तु अब तू मेरे पग-पग को गिनता है,

17मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं,

18“और निश्चय पहाड़ भी गिरते-गिरते नाश हो जाता है,

19और पत्थर जल से घिस जाते हैं,

20तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है;

21उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता;

22केवल उसकी अपनी देह को दुःख होता है;