आयुब 13
जोफर बोलते हैं
सारांश: सोफर, जॉब के तीसरे मित्र, बोलते हैं, जॉब को दुष्ट मानकर और यह दावा करते हैं कि भगवान हमेशा दुष्टों की सजा देते हैं।
1“सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आँख से देख चुका,
2जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ;
3मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूँगा,
4परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़नेवाले हो;
5भला होता, कि तुम बिल्कुल चुप रहते,
6मेरा विवाद सुनो,
7क्या तुम परमेश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे,
8क्या तुम उसका पक्षपात करोगे?
9क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जाँचे?
10यदि तुम छिपकर पक्षपात करो,
11क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे?
12तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं;
13“मुझसे बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊँ;
14मैं क्यों अपना माँस अपने दाँतों से चबाऊँ?
15वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं;
16और यह ही मेरे बचाव का कारण होगा, कि
17चित्त लगाकर मेरी बात सुनो,
18देखो, मैंने अपने मुकद्दमें की पूरी तैयारी की है;
19कौन है जो मुझसे मुकद्दमा लड़ सकेगा?
20दो ही काम मुझसे न कर,
21अपनी ताड़ना मुझसे दूर कर ले,
22तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूँगा;
23मुझसे कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं?
24तू किस कारण अपना मुँह फेर लेता है,
25क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कँपाएगा?
26तू मेरे लिये कठिन दुःखों की आज्ञा देता है,
27और मेरे पाँवों को काठ में ठोंकता,
28और मैं सड़ी-गली वस्तु के तुल्य हूँ जो नाश